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कुण्डलपुर में आर्यिका संघ के सानिध्य में.. आचार्य विद्यासागर जी महाराज का 75वां जन्मोत्सव..गुरु अवतरण दिवस के रूप में मनाया गया.. बाल कलाकार मंडली ने गुरु कृपा कथा का शानदार मंचन किया..

 कुण्डलपुर में शरद पूर्णिमा पर्व गुरु अवतरण दिवस मनाया

दमोह। कुंडलपुर में आर्यिका संघ के मंगल सानिध्य में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का 75वां जन्मोत्सव बहुत ही उमंग और उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर गोटेगांव से आमंत्रित बाल कलाकार मंडली के द्वारा गुरु कृपा कथा का शानदार मंचन किया गया कार्यक्रम के प्रारंभ में जिनवाणी चैनल पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता विद्याश्री में तृतीय स्थान पाने वाली दमोह फुटेरा कि गायिका कु.अनुश्री ने मंगलाचरण की भव्य प्रस्तुति की आचार्य श्री एवं बड़े बाबा के चित्र के समक्ष ज्ञान ज्योति का प्रज्वलन किया गया। 

इस मौके पर आर्यिका श्री रिजु मती माताजी को मनीष मलैया की मातेश्वरी विद्याश्री ने शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अर्जित किया। आर्यिका रत्न पूर्णमति माताजी एवं उपशांत मति माताजी को अभय वनगांव, महेश दिगंबर, अतुल जैन, सुनील वेजिटेरियन के परिवार ने शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य अर्जित किया। आर्यिका रत्न पूर्णमति माताजी के द्वारा रचित गुरु कृपा का शानदार मंचन करने वाले बाल कलाकारों को कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष संतोष सिंघई, अभय बनगांव, नेमचंद सराफ, संतोष इलेक्ट्रिकल, नवीन निराला, शैलेंद्र मयूर, सुनील वेजिटेरियन, राजेंद्र भेड़ा, आनंद बीएसएनएल, महेश दिगंबर एवं हजारीबाग के टोनी जैन ने बच्चों को मोमेंटो भेंट कर सम्मानित किया।

 इस मौके पर आर्यिका रत्न पूर्णमति माताजी ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा कि आचार्य विद्यासागर जी भक्तों की सांसों में बसते हैं गुरु भक्तों को अमर बना देते हैं गुरु के पास अपनी महाभारत नहीं सुनाना चाहिए बल्कि उनकी रामायण हमें सुननी चाहिए गुरु से सदैव बड़ी चीज मांगना चाहिए जिस तरह नमकीन में नमक की आवश्यकता होती है मंदिर पर कलश ना हो तो मंदिर का महत्व कम हो जाता है उसी तरह जिसके जीवन में गुरु ना हो तो उसका जीवन शुरू नहीं होता हमारे लिए भगवान हैं क्योंकि हमने भगवान को नहीं देखा और गुरु ने हमको भगवान को दिखाया है, गुरु अपने गुणों से विद्याधर से विद्यासागर हो जाते हैं क्योंकि सागर में बहुत विशेषताएं होती हैं वे गुरु में भी समाई होती हैं सागर अपने में रत्न भरे होता है इसी तरह गुरु गुणों के रत्न भरे रहते हैं पर वह दिखाते नहीं हैं सागर अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता गुरु स्वयं अनुशासित होते हैं और अपने शिष्यों को भी अनुशासित करते हैं 

जिस तरह सागर गंभीर होता है गुरु गंभीर होते हैं सागर उछलता नहीं है गुरु भी अपने पुण्य के आकर्षण में उछलते नहीं है जो गंभीरता और अंतरंग के रहस्योद्घाटन करते हैं वह गुरु होते हैं जिनका जीवन हमारे लिए आदर्श होता है। वह हमारे गुरु होते हैं आर्यिका रत्न रिजु मति माताजी ने कहा कि गुरुदेव की हम पर महान कृपा रही है उन्होंने हमारा जीवन धन्य कर दिया है उनके द्वारा संसार के अनेक प्राणियों को कल्याण का मार्ग मिल गया है।

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