अनुशासन में रहना एक तपस्या है- आचार्य श्री
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने नन्हे मंदिर की धर्मशाला में मंगल प्रवचन देते हुए कहा जीवन रूपी सरिता के पुण्य और पाप दो किनारे हैं। इन्हीं के बीच जीवन सरिता बहती है। कभी यह मोही अज्ञानी जीव पुण्य के किनारे जा कर कुछ धर्म कर लेता है और कभी इंद्रिय सुख पाने के लिए विषय भोग भोगने के लिए पाप रूपी किनारे चला जाता है। लेकिन वैरागी संत संसार से पार होने के लिए पुण्य और पाप के किनारे को छोड़कर जीवन की सरिता के बीचो बीच गहराई में ध्यान के माध्यम से डुबकी लगाकर आत्म के ज्ञान सुख आदि अनंत गुणों के खजाने को पाकर जीवन का आनंद लेते हैं। आत्मा की गहराई में जाने के लिए संयम ज्ञान, ध्यान, धैर्य, श्रद्धा और अनुशासन की जरूरत होती है।
आचार्य श्री ने कहा गुरु शिष्य का संबंध अनुशासन के नियमों से जुड़ा होता है जो अनुशासन में रहता है वह उन्नति करके सफलता के शिखर पर पहुंच जाता है। अनुशासित व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ, प्रतिभा संपन्न, लोकप्रिय, कर्मठ और सबका प्रिय बन जाता है। अनुशासित व्यक्ति सब तरह की योग्यता हासिल कर लेता है। अनुशासन में रहने वालों को इस लोक का शासक बनना तो क्या परलोक के सिद्धालय का शासन भी प्राप्त हो जाता है और वह सिद्ध शिला का शासक बन जाते है। अनुशासन में रहना एक तपस्या है। अनुशासित व्यक्ति एक तपस्वी है। अनुशासन बंधन नहीं बल्कि बंधन से मुक्ति का उपाय है।
आचार्य श्री ने कहा अनुशासन में रहने से विपत्तियां टल जाती हैं। अनुशासित व्यक्ति के जीवन में आपत्ति विपत्ति आ जाए तो उनसे घबराते नहीं बल्कि युक्ति पूर्वक शांति से उनका सामना करता हैं। सच्चे साधक विपत्तियों को संपत्ति समझते हैं। जैसे कांटो के बीच में गुलाब खिलता है और चारों ओर खुशबू बिखेर का है वह गुलाब कांटो को विपत्ति नहीं समझता बल्कि अपना रक्षक समझता है। इसी प्रकार जैसे अंधेरे में दीपक जलता है और अंधकार से लड़कर चारों ओर प्रकाश बिछड़ता है। वह दीपक अंधकार को समस्या नहीं समझता है बल्कि अपना हितेषी समझता है, क्योंकि उसे ज्ञात है कि मेरी कीमत अंधकार में ज्यादा होती है, दिन के प्रकाश में नहीं। यह दृष्टि यदि मनुष्य के अंदर आ जाए तो संसार की सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। आपत्ति और विपत्ति में घबराना नहीं चाहिए बल्कि परीक्षा की घड़ियां समझना चाहिए। परीक्षा दिए बिना कोई व्यक्ति उत्तीर्ण नहीं होता है। आज श्री शांतिनाथ महामंडल विधान करने का सौभाग्य धर्मशाला के मैनेजर सुशील जैन परिवार को प्राप्त हुआ।


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