आतंकवाद मिटाने के लिए जैसे को तैसा बनना जरूरी..
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला में प्रातः कालीन सभा में कहा जैसे पेट पर भोजन बांध लेने से भूख नहीं मिटती है। भूख मिटाने के लिए भोजन गले के अंदर उतारना होता है। वैसे ही धर्म सुन लेने मात्र से कल्याण नहीं होता है। आत्म कल्याण करने के लिए धर्म को जीवन में उतारना होता है। धर्म प्रदर्शन की नहीं आत्म दर्शन की वस्तु है। कट्टरपंथियों एवं आतंकवादियों से भारतीय संस्कृति, संस्कार ,धर्म और समाज को बचाने के लिए जैसे को तैसा बनना होगा क्योंकि अधिक सरलता दुखदाई हो जाती है। देश वासियों की सरलता का हमेशा आतंकवादी लोग नाजायज फायदा उठाते रहे हैं। भारतीय संस्कृति के साथ अभी तक गलत करते रहे है।आज आचार्य श्री के ससंघ सानिध्य में श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हे मन्दिर जी के शिखर तल में 24 तीर्थंकरों के प्रतीक स्वरूप जिनालय के ऊपर 24 ध्वजा पताका 24 श्रावक श्रेष्ठयों के परिवारों द्वारा लगाई गई। एक अवसर पर अपने मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने एक उदाहरण देते हुए कहा जैसे जंगल में देखते हैं कि लोग सीधे-सीधे पेड़ काट कर ले जाते हैं और टेढ़े मेढ़े छोड़ कर चले जाते हैं इसीलिए तो खड़े जाते हैं । वैसे ही सीधे-सीधे लोगों को आज की दुनिया में कुटिल प्रवृत्ति वाले लोग समाप्त कर देते हैं। इसीलिए ऐसे लोगों को ठीक करने के लिए जैसे को तैसा बनना होगा।
आचार्य श्री ने कहा धार्मिक क्रियाएं परमार्थ की सिद्धि के लिए होती है । परमार्थ की सिद्धि होने पर अर्थ सिद्धि अपने आप हो जाती है । दान, पूजा, ग्रंथों का पठन-पाठन एवं मंदिर निर्माण आदि का कार्य व्यर्थ का नहीं है बल्कि परमार्थ का कार्य है। उसमें थोड़ी हिंसा जरूर होती है लेकिन वह हिंसा घर में रहने वाले गृहस्थ के लिए क्षमा योग्य है। तलवार की कीमत उसकी धार से होती है । आदमी की कीमत उसके व्यवहार से होती है । इसलिए व्यवहार अच्छा करना चाहिए । व्यवहार बिगड़ जाने से संबंध बिगड़ जाते हैंऔर व्यापार बिगड़ जाता है। काम करने वालों की का हमेशा कद्र होता है । अच्छे लोगों का स्वर्ग में भी जिक्र होता है । अच्छे लोगों का सारी दुनिया को हमेशा फिक्र होता है। वक्त पर काम नहीं करने से आदमी कम वक्त हो जाता है। वक्त पर काम करने वाला सबको पूज्य हो जाता है।
आचार्य श्री ने कहा अन्याय का धन चार पीढ़ी तक चलता है और हमेशा दुख ही देता है इसीलिए न्याय नीति पूर्वक धन कमाना चाहिए। फिजूल में खर्च नहीं करना चाहिए। जो पैसे की बचत करता है वह सबके लिए प्रिय हो जाता है । बिना वादा के जो कर्तव्य समझकर कार्य करता है वह मरने के बाद भी सब के दिलों में राज करता है।
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