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भारतीय संस्कृति में परमात्मा की पूजा चंदन से की जाती है.. क्योंकि जैसे चंदन शीतल होता है वैसे भगवान की वाणी शीतल होती है.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज

 परिवार में  दिमाग नहीं दिल लगाना चाहिए--आचार्यश्री

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा भारतीय संस्कृति में परमात्मा की पूजा चंदन से की जाती है क्योंकि जैसे चंदन शीतल होता है वैसे भगवान की वाणी  शीतल होती है। भगवान की वाणी सभी प्राणियों को शीतलता प्रदान करती है। भगवान के अंदर काम क्रोध आदि की अग्नि नहीं होती है हे भगवान ऐसी शीतलता हमें भी प्राप्त हो । चंदन सुगंधित होता है भगवान का शरीर भी सुगंधित होता है। वह सुगंधी मुझे भी प्राप्त हो ।चंदन औषधि का काम करता है ।भगवान की वाणी संसार के रोगों को नाश करती है । मेरे रोगों का नाश हो इसलिए मैं चंदन लेकर आया हूं ।ऐसा भक्त भगवान के सामने भावना करके चंदन से पूजन करता है । जैसे चंदन के पेड़ में जहरीले सांप लिपटे रहने पर भी चंदन जहरीला नहीं होता बल्कि वह सांप ही शीतलता का अनुभव करता है, वैसे ही विषय भोग एवं कषाय से युक्तप्राणी भगवान के पास जाने के बाद शीतलता का अनुभव करता है, परंतु भगवान के ऊपर उन विषय वासना का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।चंदन का माथे में तिलक किया जाता है ,भगवान भी तिलक स्वरूप हैं ,इसलिए चंदन भगवान के चरणों में चढ़ाया जाता है ।

  आचार्य श्री ने कहा परिवार के बीच में जब घर में रहो तब दिमाग नहीं लगाना चाहिए,बल्कि दिल लगाना चाहिए। परिवार वालों के बीच दिमाग लगाओगे तो तनाव पैदा होगा ,तर्क वितर्क उत्पन्न होंगे, जो संदेह भी पैदा कर सकते हैं। लेकिन जब बाहर व्यापार के लिए जाओ, नौकरी के लिए जाओ तो दिमाग लगाना चाहिए । पैसा दिमाग लगाकर बुद्धि युक्ति  और मेहनत से कमाया जाता है ।बाहर बाजार में दिमाग का खेल चलता है । दिमाग वही लगाता है जो विद्वान होता है । विद्वान सर्वत्र पूजा जाता है ।एक विद्वान सो मूर्खों को हरा देता  है । 

आचार्य श्री ने कहा जिस प्रतिमा को भगवान मानकर पूजा जाता है उसी प्रतिमा के टूट जाने पर जैसे लोग मंदिर से निकाल देते हैं ,वैसे ही जिसे लोग अपने गले से लगाते हैं और दिल में बसाकर रखते हैं उससे दिल टूट जाने पर दिल से बाहर निकाल देते है । प्रेम का धागा टूट जाने पर, विश्वास की डोर  टूट जाने पर और दिल में दरार पड़ जाने पर उसे जोड़ना  बहुत कठिन है । इसलिए व्यवहार ऐसा करना चाहिए कि दिल ना टूटे ।दिल की अपनत्व भावनाएं दूर रहने वालों को भी नजदीकी का एहसास कराती है ।लेकिन जिससे अपनापन  ना हो उसके पास रहने पर भी दूरी बनी रहती है ।भाई भाई के बीच पत्थर की दीवार भले हो लेकिन दिलों के बीच में  दीवाल नहीं होना चाहिए।

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