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छोटी छोटी गलतियों को बार-बार दोहराने से बड़ी गलतियां होती है..समाज में संदेह की खाई बनाकर बांटने का नहीं.. बल्कि समाज को एक करने का कार्य करना चाहिए.. आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज

 पुण्य को पुण्य कार्य में लगाने से आत्मा परमात्मा बन जाता है

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला परिसर में उपदेश देते हुए कहा पूर्व जन्म में संचित किए हुए पुण्य को यदि पाप कर्म में लगाते हैं तो वह पाप रूपी कीचड़ पैदा करता है। पुण्य को  पाप में लगाने से पुरुष पापी पामर बन जाता है । यदि पुण्य को पुण्य कार्य में लगाते हैं तो परमात्मा बन जाते हैं । भगवान के चरणों में जल चढ़ाने से पाप कर्म धुलता है , ज्ञान की वृद्धि होती है विचारों में निर्मलता आती है ,आत्मा पवित्र होती है, जन्म बुढ़ापा और मृत्यु को जीत लेते हैं। जिस प्रकार जल से कीचड़ धुलता है और जल से ही कीचड़ पैदा होता है उसी प्रकार पुण्य से ही पाप रूपी कीचड़ आत्मा में पैदा होता है पुण्य को जब विषय भोगों में लगा दिया जाता है। लेकिन जब उसी पुण्य को धर्म कार्य में लगा दिया जाता है तो पाप कर्म घुल जाता है इसलिए सच्चा धर्मात्मा पुण्य को भगवान की भक्ति में, दान पूजा में और परोपकार में लगाता है भोगों में नहीं।

  आचार्य श्री ने कहा जल स्वच्छ होता है भगवान का शरीर भी स्वच्छ होता है मेरा शरीर  मन स्वच्छ एवं स्वस्थ रहे ।जल निर्दोष होता है भगवान भी सभी दोषों से रहित होते हैं मेरे अंदर से भी सभी दोष समाप्त हो। जल मल को धोता है भगवान ने तुमने पाप रूपी मल को धो दिया है मेरा भी पाप कर्म धूल जाए। जल दर्पण के समान होता है भगवान आपका ज्ञान भी दर्पण के समान है ,जिसमें तीनो लोक झलकते है ,मैं भी केवल ज्ञानी बनू। जल प्यास को बुझाता है दाह को मिटाता है आपने दाह  को मिटाया है आपकी वाणी संसारी प्राणी को शीतलता देती है, मुझे  शीतलता प्राप्त हो इसलिए हे भगवान आपके चरणो में जल चढ़ाने लाया हूं।

आचार्य श्री ने कहा गलत धारणा बना लेना जीवन की सबसे बड़ी गलती है।गलत धारणाएं ग्रंथों के अध्ययन से ,गुरुओं के प्रवचन से और बड़े लोगों के अनुभव से मिटती हैं । गलत धारणा जीवन की सबसे बड़ी भूल है ।यह भूल अनादि काल से चल रही है ।भूल सुधारने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए । भूल को सुधारने से तन ,मन और  जीवन सुंदर हो जाता है । भूल सुधार जाने से अंदर मन में असीम खुशी होती है, आत्मा में संतोष उत्पन्न होता है, आत्मविश्वास पैदा होता है। भूल सुधारने पर धर्म के प्रति सच्ची आस्था पैदा होती है ।भूल हमेशा भ्रम पैदा करती है । भ्रम पैदा होने से मन अस्थिर होता है और बुद्धि का ह्रास होता है। इसलिए भ्रम ही संसार के भ्रमण का कारण है। कसाय की अर्थी बनाकर अंतिम संस्कार कर देने से बार-बार जन्म मरण का भी अंतिम संस्कार हो जाता हैदूसरों के गुणों का गाना गाने से मधुर संबंध बनते हैं और ताना मारने से संबंध मिटते हैं । इसलिए ताना ना मार कर गाना,गाना चाहिए, समाज में संदेह की खाई बनाकर बांटने का कार्य नहीं करना चाहिए, बल्कि समाज को एक करने के लिए संदेह की खाई को पाटने का कार्य करना चाहिए इसी में जीवन की भलाई है।

आचार्य श्री ने कहा छोटी छोटी गलतियों को बार-बार दोहराने से बड़ी गलतियां होती है। छोटी छोटी नदियों से बड़ी नदियां उत्पन्न होती है ।छोटे-छोटे कार्य करने से बड़े-बड़े कार्य होने लगते हैं । छोटी-छोटी बातों से बड़ी-बड़ी बातें होने लगती है ।छोटे-छोटे नियम पालन करने से बड़े-बड़े नियम पलने लगते हैं ।इसी लिए कहा गया है, छोटे-छोटे नियम एक दिन बहुत बड़े हो जाते हैं, हाथों के बल चलते चलते पांव खड़े हो जाते है।

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