आज नवीन पिछिका की शोभायात्रा निकाली जाएगी
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज का चातुर्मास समापन की ओर है। आचार्य श्री के संघ के सानिध्य में आज 21 नवंबर से श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन प्रातः 7 बजे से अभिषेक शांतिधारा घटयात्रा एवं ध्वजारोहण के साथ प्रारंभ होगा जो 30 नवंबर को रथ उत्सव के साथ पूर्ण होगा। इस विधान का आयोजन श्रीमान अरविंद कुमार पुत्र अंकित कुमार टडा वाले परिवार, फार्म जैन केमिकल एवं प्लास्टिक, धगड़ चैराहा के पुण्यार्जन से किया जा रहा है। विधान की पूर्ण तैयारी कर ली गई है। श्रीमती सुधा अरविंद कुमार राजाश्रीपाल महारानी मैनासुंदरी, श्रीमती रजनी अंकित जैन सोधर्में-सचि इंद्राणी एवं श्रीमती अंजलि अर्पित कुमार ईशान इंद्र बनेंगे। विधान कर्ता परिवार के कर कमलों से ही ध्वजारोहण किया जाएगा।
प्रातः 7 बजे अभिषेक शांतिधारा के उपरांत 8 बजे आचार्य श्री का मंगल प्रवचन होगा, 8ः30 बजे गाजे-बाजे के साथ घटयात्रा प्रारंभ होगी। घटयात्रा के साथ ही नवीन पिछिका की शोभायात्रा निकाली जाएगी। विधान के मंत्रोच्चारण एवं क्रिया विधि ब्रह्मचारी प्रतिष्ठा आचार्य नवीन कुमार पंडित सुरेश चंद जी एवं ब्रह्मचारिणी दीदी द्वारा की जाएगी।
आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने मंगल उपदेश देते हुए कहा मधुर व्यवहार ही चुंबकीय व्यक्तित्व कहलाता है, जो सारी दुनिया को अपनी ओर खींचता है। खुशी पाने के लिए इकट्ठा नहीं करना पड़ता है बल्कि छोड़ना पड़ता है। संग्रह करने मैं कष्ट होता है एवं संग्रह हो जाने पर रक्षण करने में दुख होता है। संग्रह किया हुआ यदि चला जाए तो भी दुख होता है इसीलिए जोड़ने में नहीं छोड़ने में सुख है। जीवन में ऐसा आचार, विचार, आहार और व्यवहार रखना की तुम पर विश्वास करने वालों का विश्वास कम ना हो। यही सच्ची श्रद्धा है। यही सच्चा सम्यक दर्शन है। जीवन में कभी ना नाराज होकर जीना चाहिए, ना किसी को नाराज करके जीना चाहिए, जीना है तो बस खुश करके खुश होकर महाराज बनकर जीना चाहिए। खुश होकर जीने वाला आनंद की जिंदगी जीता है।
आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा बैरागी को जिंदगी उलझन नहीं सुलझन लगती है, भार नहीं आभार लगती है, कुरूप नहीं स्वरूप लगती है, कठिन नहीं आसान लगती है। उसे आशियाने की जरूरत नहीं पढ़ती बल्कि आशियाने को छोड़कर भगवान के ऊपर आशा और विश्वास लगाकर रखता है। इसलिए कहावत है, आशा से आसमान टिका है। आशियाने जमीन पर बहुत बनाएं दिल में बनाओ तो जिंदगी जीने का मजा कुछ और होता है। संदेह से दिलों की दीवार टूट जाती है। नाव के अंदर सुराख तो नोका डूब जाती है। व्यवहार ऐसा करना चाहिए कि दिलों में ना संदेही की दीवार खड़ी ना हो ना अहंकार की अकड़न हो और ना दिलों में नफरत के छेद हो। अकड़ना बुजदिल वालों का काम है। झुकना खुश दिल वालों का काम है।
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