सच्चे साधु वृक्ष की भांति होते हैं -आचार्य निर्भय सागर
दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा उचित कार्य करने का नाम धर्म है अनुचित कार्य करने का नाम अधर्म है अनुचित कार्य दंडनीय अपराध है। देश समाज धर्म एवं परिवार में जो सभी के लिए हितकारी उचित कार्य हो वही करना चाहिए उचित कार्य करने वालों का सम्मान किया जाता है अनुचित कार्य करने वालों का गली-गली में अपमान होता है। जब जन्म होता है तब बच्चा रोता है जब अर्थी उठती है तब दुनिया रोती है जाने वाला हनसा हंसता है। जीवन में ऐसे कार्य करना चाहिए की मरने के बाद आदमी आपके कार्य की सराहना करें आपको याद करें और तारीफ करें ऐसा कार्य ही उचित कार्य माना जाता वही कार्य करना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा तुम आए जब जगत में जगत हंसा तुम रोए अब ऐसी करनी कर चलो आगे हंसी ना होए उचित और अनुचित का ज्ञान सद्गुरु से मिलता है अनुच्छेद कार्य पाप कहलाता है। आहार भी उचित करना चाहिए उचित आहार स्वास्थ्यवर्धक होता है अनुचित आहार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। आहार की मात्रा हित अहितकारी और भक्ष अभक्ष का ज्ञान किए बिना ही ग्रहण करना अनुचित आहार कहलाता है। आचार्य श्री ने कहा वाणी भी उचित बोलना चाहिए अनुचित वाणी लड़ाई झगड़े कराती है अनुचित बोलने को भोकना कहते हैं। भोकना सज्जनों को अच्छा नहीं लगता है। उचित बोलना उचित खाना उचित चलना उचित बैठना और उचित ढंग से वस्तु को उठाना रखना यह सब संयम कहलाता है। उचित लोगों की संगति करना सज्जनता कहलाती है। आचार्य श्री ने कहा वाणी ऐसी बोलना चाहिए की सुनने वालों को ऐसा लगे जैसे मुख से फूल झड़ रहे हो कठोर शब्द दिल में चोट करते हैं शब्द मीठे बोलना चाहिए। जैसे फूल को मारने से किसी को चोट नहीं पहुंचती है, वैसे ही शब्द ऐसा हो जिससे किसी को चोट ना पहुंचे शब्द फूल के समान आनंद कारी होना चाहिए खिले हुए फूल के समान मुख भी खिला हुआ होना चाहिए। खिला हुआ मुंह सभी को आकर्षित करता है, तनाव को दूर करता है, शारीरिक और मानसिक व्याधियों को दूर करता है इसलिए अपना जीवन फूल के समान बनाना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा आज की दुनिया में लड़के लड़कियां दोस्ती और प्रेम में एक दूसरे को फूल देते हैं फूल देना प्रेम और मित्रता का प्रतीक है। इसी प्रकार भगवान से मैत्री और वात्सल्य बना रहे इसलिए फूल चढ़ाकर पूजा की जाती है इसीलिए प्रतिदिन पूजा जरूर करना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा सच्चे साधु वृक्ष के समान होते हैं जैसे प्राणियों द्वारा छोड़ी गई प्रदूषित वायु को ग्रहण कर लेते हैं। साधु समाज रूपी वायुमंडल में फैले हुए ईर्ष्या द्वेष आदि के प्रदूषण को दूर करते हैं पेड़ पौधे गंदे जल एवं मल से गंदगी को खाद के रूप में ग्रहण करके गंदगी को सुखा देते हैं और मीठे मीठे फल देते हैं वैसे ही समाज में फैले प्रदूषण को सच्चे साधु हटाते हैं। वृक्ष की भांति सब जगह सभी को शरण देते हैं एवं समाज में फैली गंदगी को हटाकर प्रेम, वात्सल्य, ज्ञान और अपनत्व के मीठे मीठे फल देते हैं।
दीक्षा दिवस आज- चर्तुमास कर रहें मुनि श्री सुदत्त सागर जी महाराज एवं मुनि सोमदत्त सागर जी महाराज के प्रथम दीक्षा दिवस के शुभ अवसर पर आज जैन धर्मशाला नन्हें मंदिर में दोपहर 1ः30 बजे से पाठशाला के बच्चों द्वारा रंगा रंग कार्यक्रम प्रस्तुत कियें जाएगें।



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