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आठ पुष्पों से पूजा करने पर भगवान भी प्रसन्न होते हैं.. भगवान की पूजा पुष्पों से देव गण भी करते हैं.. पुष्पों से पूजा करने पर कष्ट दूर होते हैं आनंद की प्राप्ति होती है.. आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज

 भगवान की पूजा पुष्पों से देव गण भी करते हैं.. आचार्य श्री

दमोह। परम पूज्य वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने जैन धर्मशाला में उपदेश देते हुए कहा आठ पुष्पों से पूजा करने पर भगवान भी प्रसन्न होते हैं। भगवान की पूजा पुष्पों से देव गण भी करते हैं मनुष्य को भी पुष्पों से पूजा करना चाहिए पुष्पों से पूजा करने पर कष्ट दूर होते हैं आनंद की प्राप्ति होती है परिवार एवं मित्र जनों से प्रेम बढ़ता है पुष्प ऐसा चढ़ाना चाहिए जो जमीन पर ना गिरा हो किसी मृत जीव से स्पर्श ना हुआ हो पुष्प की पंखुड़ी ना टूटी हो फूलों को पेड़ से तोड़ा ना गया हो बल्कि पेड़ से स्वयं झड़ गया हो जिसमें परागकण ना हो क्योंकि उसमें चलने फिरने वाली सूक्ष्मा त्रश जीव रहते हैं उन जीवो की हिंसा हो सकती है। जो फूल तोड़ कर चढ़ाए जाते हैं उन्हें परागकण एवं पराग नलिका होती है अतः उन्हें ना चढ़ाएं यदि ऐसी फूल ना मिले तो चावल को केसर से रंग कर पुष्प की कल्पना करके पूजन में चढ़ाना चाहिए। 

 वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी ने कहा कि पुरुष वही है जो पुरुषार्थ करें मनुष्य के पास दो हाथ होते हैं पुरुषार्थ करने के लिए अन्य प्राणियों के पास नहीं इसीलिए मनुष्य चार पुरुषार्थ कर सकता है सर्वप्रथम धर्म पुरुषार्थ प्रतिदिन करना चाहिए धर्म पुरुषार्थ से अर्थ काम और मोक्ष इन तीनों पुरुषार्थ की सिद्धि होती है वर्तमान में अर्थ संग्रह हो रहा है अर्थ पुरुषार्थ का कार्य नहीं अर्थ पुरुषार्थ करने वाला धन का संग्रह करता है लेकिन विषय भोगों में ना लगा कर दान पुण्य आदि परोप कार्य मैं लगाया जाता है काम पुरुषार्थ वही है जिसमें संतान प्राप्ति की इच्छा होती है संतान प्राप्ति की इच्छा के बिना की गई रतिक्रिया कामवासना कहलाती है काम पुरुषार्थ नहीं धर्म पुरुषार्थ तो धर्म है ही लेकिन आरती पुरुषार्थ और काम पुरुषार्थ भी धर्म है यदि न्याय नीति और नियम संयम पूर्वक यह पुरुषार्थ किया जाए तो..

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