शरीर रूपी मटके की रक्षा करना चाहिये- आचार्य श्री
दमोह। जबलपुर नाका स्थित श्री दिगम्बर जैन पाश्र्वनाथ मंदिर में विराजमान वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ससंघ के द्वारा शीत कालीन वाचना के द्वितीय दिवस समयसार की क्लास एवं मंगलदेशना की शुरूआत मंदिर प्रांगण में करते हुये आचार्य श्री ने वहां पर मौजूद सभी श्रावकों को अपने प्रवचनों के माध्यम से बताया कि समय को आप न रोक सकते है और न ही जीत सकते। काल को यदि इस दुनिया में कोई रोक सकता है तो वो है अरिहंत परमेष्ठी, क्योंकि अरिहंत परमेष्ठी काल के वस में नही होते। जो काल के वस में होता है वो विकराल रूप धारण करता है। इस लिय काल के वसीभूत न होते हुये काल को जीतने की बात करना चाहिये। जो काल को जीत लेता है वो परमात्मा बन जाता है। काल को जीतने के लिये, आत्मा को पाने के लिये, उस म्रत्यु को जीतने के लिये ये समयसार ग्रंथ है।
आचार्य श्री ने केवली भगवान के संबंध में कहा कि हम मंगलाचरण में पड़ते भी है, कि केविली कौन कहलाता है तो केवल्य ज्ञान से सहित है वो केवली कहलाते है। ज्ञान चार प्रकार के होते है मिथ्याज्ञान,सम्यकज्ञान,केवलज्ञान, शुद्धज्ञान। इस शरीर को प्राप्त करना। तो वहीं महंत के संबंध में भी आचार्य श्री ने बतालाया कि महंत किसे कहते है,जिन्होने अच्छी तरह से अंत को जीत लिया है अंत मतलब मृत्यु,काल को जीत लिया है वो महंत है ऐंसा संत ही महंत होता है। मंगलाचरण में कहते है हम सिद्ध भगवान की वंदना करते है। वंदना परमेष्ठी के गुणों जाती है और दर्शन परमेष्ठी के रूप का किया जाता है। वंदना गुणों की की जाती है और दर्शन गुणवान का किया जाता है, दोनेा में अंतर है। वंदना साधु कि की जाती है जो 28 मूलगुणो के धारक है।वंदनीय बनने के लिये वंदना की जाती हैं जो वंधन से मुक्त हो गया है वो वंदनीय हो जाता है। लेकिन जो वंधन में वधा है भले ही वो कर्म के बंधन में बंधा हो,संसार का,मोह के बंधन में बंधा हो वो वंदनीय नही है, इसलिये वंदना करो गुणों की,दर्षन करो गुणवान के। गुणों की प्राप्ति के लिये भी वंदना करो ताकि आपके गुण हमें प्राप्त हो,जो गुणवान या गुण नही है तो वो वंदनीय नही है।
आचार्य श्री ने उदाहरण देते हुये बताया कि जिस प्रकार से दो घड़े रखे हुये है एक फूटा हुआ और दूसरा घी से भरा हुआ, तो हम किसे घी से भरे हुये घड़े को संभलेंगें उसकी रक्षा करेंगें और परंतु फूटे हुये घड़े को न तो हम संभालेंगें और न ही उसकी रक्षा करेंगें बल्कि उस घड़े को हम रास्ते में ही अलग कर देंगें। इस लिये हमें फूटा हुआ घड़ा नही बनना है हमें अच्छा घड़ा यानि गुण रूपी घी से भरा हुआ घड़ा बनना है।घड़े भी पांच प्रकार के होते है कच्चा,पक्का,फूटा,उल्टा और चिकना यदि हम कच्चे घड़े में पानी भरते है तो वह गल जायेगा,और यदि पके हुये घड़े में पानी भरते है तो वो न तो गलेगा और न ही नष्ट होगा, पके हुये घड़े का अर्थ है जिसे संसार से वैराग्य हो गया वो पका हुआ घड़ा है।
आचार्य श्री ने बताया कि आपके अच्छे पुण्य है तो आपकों मनुष्य जीवन मिल गया ,जैन कुल मिल गया और देवशास्त्र गुरू मिल गये,शरीर स्वस्थ्य मिल गया और यदि पुण्य है तो आपकों ऐंसा सत्संग का महौल मिल गया। आचार्य श्री ने रत्नत्रय को धारण करने के संबंध में बताया कि जिस प्रकार यदि आप सिर पर घी से भरा हुआ मटका लेकर चल रहे हो और आप को ठोकर लग जाये तो आप मटके की रक्षा करते है वो भी इसलिये क्योंकि आपके मटके में घी भरा हुआ है उस समय आप घी को नही पकड़ सकते क्योंकि आप मटके की रक्षा करोगे तभी घी की रक्षा होगी उसी प्रकार हमारा शरीर एक घड़ा है और उसमें रत्नत्रय रूपी घी भरा हुआ है इसलिये शरीर रूपी मटके की रक्षा करना चाहिये। मुनि महाराज को आहार देकर आप अपने शरीर रूपी मटके की रक्षा करते हो और रत्नत्रय रूपी घी का सेवन है।
जबलपुर नाका जैन मन्दिर के कमेटी के महामंत्री सुधीर विद्यार्थी ने बताया कि आज 25 दिसम्बर की दोपहर 2 बजे शीतकालीन वाचना की कलश स्थापना श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर जबलपुर नाका में होगी। मनोज जैन हितवाद की रिपोर्ट


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