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आचार्य श्री वधर्मान सागर जी नन्हें जैन मंदिर में.. वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज जबलपुर नाका जैन मंदिर में विराजमान.. कुंडलपुर में आर्यिका संघ के सानिध्य में चल रहा कल्याण मंदिर विधान..

आचार्य श्री वधर्मान सागर जी नन्हें मंदिर में विराजमान

दमोह। तीर्थराज सम्मेद शिखरजी से दो हजार किमी की तीर्थ वंदना पर निकले आचार्यश्री वधर्मान सागर जी महाराज संघ सहित श्री पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हें मंदिर जी में विराजमान है। रविवार को प्रातकाल आचार्यश्री के सानिध्य में श्री शांति विधान का आयोजन किया गया। वहीं धर्मसभा के पूर्व सौभाग्य अर्जित करने वाले श्रावकजनों को आचार्यश्री के पाद प्रच्छालन, शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोपहर में आचार्यश्री ने संघ के साथ आसपास के जैन मंदिरों की वंदना की वहीं सोमवार 28 दिसंबर को आचार्यश्री एवं मुनि संघ आहारचर्या हेतु जैन धर्मशाला से निकलेंगे।

जबलपुर नाका जैन मंदिर में आचार्य निर्भय सागर जी

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने समयसार ग्रंथ की वाचना करते हुए जबलपुर नाका  में कहा जीवन साधना के लिए मिला है साधनों को इकट्ठा करने के लिए नहीं। साधनों को जुटाने में पूरी जिंदगी कम पड़ जाती है लेकिन साधना करने के लिए मानव जीवन काफी है। साधना करने वाला व्यक्ति असहाय गरीब रोगी दीन हीन और दरिद्री को देखकर पिघल जाता है । वह अपने दुख नहीं देखता बल्कि दूसरों के दुख को देखकर  दुखित होता है। साधना करने वाला व्यक्ति दया करुणा और श्रद्धा से भरा होता है। साधनों को जुटाने वाला व्यक्ति लोभ लालच, छल कपट और मायाचारी से भरा होता है।साधना करने वाला साधु संत सज्जन कहलाता है ।जबकि साधनों को एकत्रित करने वाला व्यक्ति लोभी लालची और पापी कहलाता है। इसीलिए घर में रहने वाले व्यक्तियों को दूसरों से घृणा नहीं करना चाहिए बल्कि उनकी मदद करना चाहिए।

आचार्य श्री ने कहा गरीब आदमी घर से सुबह निकलता है मजदूरी करके अपने पेट भरने के लिएऔर अमीर आदमी भी सुबह से निकलता है अपना पेट कम करने के लिए । गरीब आदमी शक्कर को प्राप्त करने के लिए कंट्रोल के चक्कर लगाता है और अमीर आदमी शक्कर को कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर के चक्कर लगाता है। चक्कर दोनों लगा रही है। समस्या दोनों के पास है। गरीबआदमी को पेट भरने की और अमीर आदमी को पेट कम करने की । अमीर और गरीब दोनों साधनों को जुटाने में लगे हैं। गरीब आदमी साधना करें अपने खर्च को कम करें मेहनत ज्यादा करें तो समस्या का समाधान हो जाएगा । यदि अमीर आदमी साधना करें खानपान को संतुलित करें शारीरिक मेहनत करें तो समस्या का समाधान हो जाएगा । आचार्य श्री ने कहा बगुला भगत मत बनो, मुख में राम बगल में छुरी का काम मत करो। धर्म के नाम पर छल कपट मत करो। सभी जीवो के प्रति मैत्री भाव रखो। दीन दुखी जीवो पर करुणा और दया का भाव रखो। विपरीत आचरण वाले शत्रुओं के प्रति भी मध्यस्थ भाव रखो। तभी आत्म ध्यान हो सकेगा और यह आत्मा परमात्मा बनने की साधना कर सकेगा । कठोर तपस्या और वैराग्य धारण करके उत्तम त्याग को वही व्यक्ति अपना सकता है जो अपनी आत्मा को पर वस्तुओं से और अपने शरीर से भी पृथक मानता है।

आचार्य श्री ने कहा जैसे तलवार म्यान से प्रथक होती है वैसे ही आत्मा इस शरीर से पृथक है इस प्रकार पक्का श्रद्धान करके जो आत्म ध्यान में लीन होता है उसे अपनी आत्मा और संसार की सभी आत्माओं में परमात्मा दिखाई देने लगते हैं । जिसे प्रत्येक आत्मा में परमात्मा दिखाई देने लगते हैं उसे किसी जीव को कष्ट पहुंचाने का अथवा मारने का भाव नहीं आता है। दूसरों की हत्या करने वाला, कष्ट पहुंचाने वाला परमात्मा की हत्या करने का भागीदार होता है ,क्योंकि प्रत्येक आत्मा परमात्मा है। आत्मा के अपमान का अर्थ परमात्मा का अपमान है।

दुनिया में सबसे अधिक रफ्तार पूजा और प्रार्थना की होती है- आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

दमोह। संसारी प्राणी अपने दुख को बेच नहीं सकता और सुख को खरीद नहीं सकता संसार की रीति ऐसी है की कर्मों की अदभुत माया है शत्रु मित्र हो जाता है और मित्र शत्रु हो जाता है मनुष्य कर्म का खिलौना बन जाता है कभी पाप में और कभी पुण्य में डूब जाता है अनंत काल बीत गया वह अपनी चेतना को नहीं जान पाया यदि अपनी आत्मा को जान ले तो आत्मा का कल्याण का मार्ग मिल जाएं। उपरोक्त उदगार आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी ने कुंडलपुर में चल रहे कल्याण मंदिर विधान में अभिव्यक्त किए। 

इस मौके पर सेठ मंदिर के द्वारा द्रव्य समर्पित की गई कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष संतोष सिंघई, उपाध्यक्ष देवेंद्र सेठ, अभय बनगांव, अरविंद ईटोरिया, महामंत्री नवीन निराला, संतोष इलेक्ट्रिकल्स, सुनील वेजिटेरियन, शैलेंद्र मयूर, राजेंद्र भेड़ा, संजीव शाकाहारी, सावन सिंघई आदि ने समोसारण में धर्म ध्वजा चढ़ाने का सौभाग्य अर्जित किया। 

आर्यिका श्री ने अपने मंगल प्रवचन में आगे कहा कि दुनिया में सबसे अधिक रफ्तार पूजा और प्रार्थना की होती है पूजा व प्रार्थना के लिए मंदिर बनवाया जाता है पहले लोग मंदिर बहुत सुंदर बनवाते थे किंतु आज लोग घर बनवाते हैं घोंसले तो पशु पक्षी भी बना लेते है। भगवान का मंदिर तो कोई भाग्यशाली ही बना पाता है बड़े बाबा का मंदिर अपनी ऊंचाइयों को छू रहा है इतना विशाल जैन मंदिर को देखकर आश्चर्य होता है इस विशाल भव्य जिनालय के लिए पंचकल्याणक की तैयारियां तो अब प्रारंभ सी लगती है इसे देखकर ऐसा लगता है कि अकृतिम चैत्यालय कैसे हुआ करते होंगे जो अपनी दौलत को मंदिर के शिखर निर्माण में लगाता है वह उन्नति को प्राप्त होता है। आयुष जैन की रिपोर्ट

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