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देशद्रोही नहीं, देह द्रोही बनो-वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर’ जी महाराज.. नौरादेही अभ्यारण के ग्राम उनारी खेड़ा से विहार करके.. झलौन के जैन मंदिर पहुची श्री जी की प्रतिमाओं की भव्य अगवानी..

 ’देशद्रोही नहीं, देह द्रोही बनो-आचार्य श्री निर्भय सागर’

दमोह। वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज संघ सहित पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर जबलपुर नाका दमोह में विराजमान है। प्रतिदिन प्रातः पौने नौ बजे से मंगल प्रवचन , दोपहर पौने तीन बजे से समयसार ग्रंथ की वाचना एवं शाम सवा पांच बजे से गुरु भक्ति, कल्याण मंदिर स्तोत्र की अर्थ सहित व्याख्या चल रही है। आचार्य श्री ने कहा मानव जीवन आम के फल के समान मिला है ।आम पकने पर मीठा रस देता है लोग उसी को चूसते हैं । बाद में गुठली को बोल देते हैं खेत में वह पुनःपेड़ बनकर फल देने लगते हैं । वैसे ही जवानी में इस मानव जीवन रूपी फल से पूरा रस चूस लिया जाता है । लेकिन बुढ़ापे रूपी बची हुई आम की गुठली को धर्म रूपी खेत में बपन कर दिया जाए तो उसमें मोक्ष और स्वर्ग रुपी सुख के फल लगते हैं।

  आचार्य श्री ने कहा देशद्रोही नहीं बनो ,बल्कि देह द्रोही बनो। देह के प्रति अति लगाओ मत रखो । जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा के गुणों में लीन होता है अपने आत्मस्वरूप को जानता है तब वह राग द्वेष मोह आदि से ऊपर उठ जाता है । उस समय शत्रु और मित्र में , सुख और दुख में , संयोग और वियोग में समता भाव आ जाता है। समता भाव आकुलता को दूर करता है। जहां आकुलता है वहां दुख है। जहां निराकुलता वहां सुख है । कार्य से निवृत्ति अध्यात्मवादी को अच्छी लगती है । प्रवृत्ति संसारी जीव को अच्छी लगती हैं ।जहां प्रवृत्ति होती है वहां हिंसा होती है और आकुलता होती है, इसलिए मुक्ति का मार्ग प्रवृत्ति का नहीं निवृत्ति का मार्ग है।भीड़ में रहकर भी अध्यात्मवादी संतअपने मन को आत्मा मे लगाए रखने से एकांत का अनुभव कर लेता है । भीड़ में घिरे रहने पर भी जो अपने आप को पृथक अनुभव कर लेता है वह महान साधक माना जाता है। 


आचार्य श्री ने कहा देह के प्रति  अलगाववादी बनना चाहिए देश के प्रति अलगाववादी नहीं बनना चाहिए । देश के प्रति अलगाववादी बनने वाले देशद्रोही कहलाते हैं । देह के प्रति अलगाववादी अध्यात्मवादी कहलाते हैं। देह के प्रति अलगाववादी बनने का अर्थ है शरीर से आत्मा को पृथक  मानना । भेद विज्ञान की प्राप्ति हो जाना जीवन में अधिक है महत्त्व महत्वपूर्ण है।  ज्ञान, विज्ञान और भौतिक विज्ञान का अध्यात्म के क्षेत्र में ज्यादा कोई महत्व नहीं है । भेद विज्ञान का महत्व सुख शांति में अधिक है । जब शरीर और आत्मा को अलग-अलग मान लिया जाता है तब नफरत, लालसा ,मोह इत्यादि पलायन कर जाते हैं। जो शरीर और आत्मा को एक मानता है वह मूर्ख है ,अज्ञानी है ।ऐसा व्यक्ति लड़ने ,मरने और मारने के लिए हमेशा तैयार रहता है । उसके जीवन में समता का अभाव हो जाता है।शरीर और आत्मा को एक मानने वाला इंद्रिय विषय भोगों में सुख मानता है ,वह दूसरों को शत्रु मानता है और सुख साता आनंद पर पदार्थों में बाहर ढूंढता फिरता है ,जबकि सुख और आनंद पर पदार्थों में नहीं है बल्कि अपनी निज आत्मा में है।
 झलौन के जैन मंदिर में श्री जी की भव्य अगवानी

झलौन जैन मंदिर नौरादेही अभ्यारण के ग्राम उनारी खेड़ा से ,श्री 1008 चंद्रप्रभु भगवान, एवं श्री 1008 शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा को बिहार करा के जैन मंदिर झलौन में विराजमान किया, उनारी खेड़ा में सभी ने अश्रुपूर्ण से विस्तृत कराया भक्ति भाव से झलौन समाज ने बड़े उत्साह, एवं विनय से श्री जी का भव्य आगमन कराया उनारी खेड़ा के सेठ पवन जैन, कोमल जैन, करोड़ी लाल आदि झलौन के सैकड़ों भक्तों ने, भक्ति भाव एवं गाजों बाजों के साथ भगवान की आगमानी की। 

इस अवसर पर सुरेश चंद्र जैन, पवन जैन, महेंद्र जैन, बड्डा सेठ,कुंदन लाल आदि ने अभिनंदन किया। अभिषेक एवं शांति धारा पवन जैन प्रियंका जैन के परिवार एवं सुरेश चंद जैन, निरंजन जैन, तन्मय जैन इन परिवारों को प्राप्त हुआ। तरण तरण न्यूज एजेंसी झलोन मुकेश जैन

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