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तुलसी को कभी पेड़ ना समझें, गाय को पशु ना समझे, गुरू को कभी साधारण मनुष्य ना समझे.. क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप है.. इसी तरह मां भी भगवान की एक रूप है.. धर्म नीति के लिए ठाकुर जी की भक्ति का होना जरूरी है.. बागेश्वर धाम सरकार

धर्म नीति के लिए ठाकुर जी की भक्ति का होना जरूरी है.. बागेश्‍वर धाम सरकार

हटा, दमोह। श्री बागेश्‍वर धाम सरकार ने देवश्री गौरीशंकर मंदिर परिसर में दद्दा कला मंच से श्रीमद भागवत महापुराण कथा पर तीसरे दिवस अपने मंगल प्रवचन में कहा कि

मन मैला तन ऊजला, बगुला कपटी अंग ।

तासों तो कौआ भला, तन मन एकही रंग ॥

जो व्‍यक्ति बाहर कुछ दिखता हो, उसके मन में कुछ और हो कपट से भरा हो तो ऐसे लोगों से तो वह काऔ ही भला है जो जो अंदर बाहर से एक सा रहता है, वह किसी के साथ छल नहीं करता, आज का आदमी ऐसे ही विचित्र हो रहे है, यहां हरि का भजन कर रहे तो थोडी देर बाद उनका वही रूप दिखाई देने लगता जो धर्म नीति के विरूद्ध होता है, धर्म नीति के लिए ठाकुर जी की भक्ति का होना जरूरी है हरी चर्चा अपने परिवार व सबके साथ की जा सकती है।


 उन्‍होने कहा कि बडी विचित्र बात है कि पशु अपने धर्म से विचलित नहीं होते है, आदमी ही अपने धर्म से भटकता है, पशुओं के लिए न तो कोई पुस्‍तक होती न ही कोई प्रवचन दिये जाते है, यदि आप सभी अपने को पूज्‍यनीय बनाना है तो अपने जीवन में कुछ सिद्धांत जरूर बनाओ, ताकि जब तक जिये और मरने के बाद भी आपको और आपके कार्यो को याद किया जाये, श्री सरकार ने दृष्‍टांत सुनाते हुए कहा कि पाप को अग्नि नहीं जला सकती, यश कीर्ति को समुन्‍द्र का पानी भी नहीं डुबा सकता, अबला सुतपुत्र नहीं जन्‍म दे सकती, नाम को काल भी नही मिटा सकता है।

श्री बागेश्‍वर धाम सरकार ने कथा सुनाते हुए कहा कि जन्‍म जन्‍मो का पुण्‍य अर्जित करने के उपरांत ही कथा का श्रवण करने का सौभाग्‍य मिलता है, राजा परीक्षित सुकदेव के प्रथम मिलन संवाद को सुनाते हुए कहा कि राजा परीक्षित को जब तक्षक नाग से सातवें दिन मौत का श्राप मिला तो सभी उन्‍हे कई प्रकार की सलाह मिलने लगी तभी उनकी नजर सुकदेव महाराज पर उनकी नजर पडी तो उन्‍होने प्रणाम करते हुए पूछा कि मरणांसन व्‍यक्ति को क्‍या करना चाहिए, किसका श्रवण किसका स्‍मरण करे, किसकी भक्ति भजन करे, सुकदेव महाराज ने कहा कि मृत्‍यु के भय से बचने के लिए अभय का होना जरूरी है, इसके लिए माधव की शरण में आना होगा, भव सागर से पार होने के लिए भजन करो यदि भजन न कर पाओ तो भजन करने वाले के पांव पकड लो इससे भी उद्धार हो जायेगा।


श्री सरकार ने यह भी स्‍पष्‍ट किया कि कथा सुनने या गंगा स्‍नान करने से केवल वे ही पाप धुलते है जो अनजाने में हो जाते है, उन्‍होने परिवार में अतिथि देवो भवः सिद्धांत बताते हुए कहा कि यह कतई नहीं होना चाहिए कि घर पर धनवान आये तो उसके स्‍वागत में कुछ ओर तथा गरीब के आने पर कुछ ओर आदमी का यह अभिनय बंद होना चाहिए, उन्‍होने कहा कि धर्म का जहां ह्रास होता है वहां विनाश आयुहीन होता है, इसका सबसे बडा उदाहरण विभिषण और विदुर है, जब धर्म पालन करने वालो को घर से निकाला गया तो वहां सभी की आयुहीन हो गई थी।

साधु के भेष में घूम रहे कालनेवियों पर कटाक्ष करते हुए उन्‍होने कहा कि साधु की मर्यादा होती है, साधु सहनशील हो, विषम परिस्थिति में आपा न खोये, करूणा का भाव हो दुसरों के दुखों को समझने वाला हो, सबको अपना मानकर साथ लेकर चलने वाला हो, शांत और धैर्य रखता हो।

पंडाल में सारे श्रावक उस समय भावुक हो गये जब उन्‍होने शिव विवाह व दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में सती व उनकी मां की भावनाओं का व्‍यख्‍यान किया, उन्‍होने कहा कि यदि कोई कथा का श्रवण भले न करें लेकिन मां की आज्ञा का पालन जरूर करना, मां को कभी दुख मत पहुंचना, मां ममता की मूर्ति व दरवाजा होती है, इस धरती पर भगवान को यदि देखना है तो मां के दर्शन कर लिया करो, मां ही होती है जो औलाद की खुशी के लिए स्‍वयं के जीवन की सारी तप तपस्‍या निछावर कर देती है, लेकिन आज निकम्‍मे बेटा अपनी मां बाप को अनाथ आश्रम में छोड कर आ रहे है।

तुलसी वृक्ष ना जानिये। गाय ना जानिये ढोर।

गुरू मनुज ना जानिये। ये तीनों नन्दकिशोर।

तुलसी को कभी पेड़ ना समझें,गाय को पशु ना समझे और गुरू को कभी साधारण मनुष्य ना समझे , क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप है। इसी तरह मां भी भगवान की एक रूप है। आज कथा का श्रवण करने दूर दूर से साधु संत श्रावक उपस्थित रहे..

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