जन्मकल्याणक में उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब
दमोह। सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में आयोजित हो रहे इस सदी के अलौकिक कुण्डलपुर महामहोत्सव के अन्तर्गत बड़े बाबा के दरबार में छोटे बाबा संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सनिध्य में जन्म कल्याणक पर मनाई खुशियां मनाई गई। जैन धर्म के इतिहास में यह पंचकल्याणक महोत्सव इस कारण अलौकिक है क्योंकि एक साथ 24 तीर्थंकर भगवान के एक साथ जन्मकल्याणक अत्यंत उत्साह उमंग के साथ मनाया गए।24 तीर्थंकर प्रभु का पर्वत पर जन्मोत्सव की खुशियां प्रकट हुईं, इंद्रों ने स्वर्ग से आकर भक्ति नृत्य किया। सम्पूर्ण भारत देश के कोने कोने से आए श्रद्धालुओं ने जन्मदिवस की बधाइयां गाईं। भगवान के जन्म कल्याणक पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री प्रशस्त सागर जी महाराज ने संदेश देते हुए श्रद्धालुओं से कहा कि यह आत्मा के कल्याण का अवसर है, तीन लोक में तीर्थंकर भगवान जैसा बैभव किसी का नहीं होता, चक्रवर्ती सम्राट के पास भी नहीं, पर भगवान अपनी शक्ति का अहंकार नहीं किया करते, ऐसे प्रभु का जन्म कल्याणक कल्याणकारी होता है।
भगवान की प्रतिमा पाषाण की हो या सोने चांदी की, पर जब प्राण प्रतिष्ठा हों
जाती है तो फिर वे प्रतिमा भगवान बन जाया करती हैं। आत्मा के समरूप के
विषय में कहा कि अहंकार बज्र के समान होता है, अत अहंकार को त्याग कर आत्मा
के कल्याण के लिए गुरुदेव के बताएं मार्ग पर चलने की सलाह दी।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को आचार्य श्री का आशीष..
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को आचार्य श्री का आशीष..
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कुण्डलपुर आकर देवाधीदेव भगवान आदिनाथ बड़े बाबा और संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया। उनके साथ पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया,दमोह विधायक अजय टंडन, पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष रतन चंद जैन, जिला कांग्रेस अध्यक्ष मनु मिश्रा, सतीश जैन, सोनू नेता ने भी आशीर्वाद प्राप्त किया।
पंचकल्याणक
कुण्डलपुर महामहोत्सव समिति, श्रीदिगम्बर सिद्ध क्षेत्र कमेटी ने पूर्व
मुख्यमंत्री कमलनाथ को शॉल, श्रीफल, बड़े बाबा का चित्र भेंट सिद्ध क्षेत्र
कमेटी अध्यक्ष संतोष सिंघई, अशोक पटनी, नवीन निराला, सोनू नेता द्वारा किया
गया। उल्लेखनीय है कि कुण्डलपुर में इस सदी के सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य
श्री विद्यासागर जी महाराज अपने समोशरण के साथ विराजमान है। प्रतिष्ठाचार्य
ब्रह्मचारी विनय भैया बंडा के निर्देशन में यह आयोजन चल रहा है।
महोत्सव के तहत जन्म कल्याणक में प्रातः अभिषेक, शांतिधारा पूजन विधान की क्रिया संपन्न हुई
24 तीर्थंकर भगवान के जन्मकल्याणक की सबने खुशियां मनाईं और नृत्य किया। दिव्य घोष और जयकारों से सम्पूर्ण क्षेत्र गूंजायमान हो गया, झाकियां आकर्षण का केन्द्र रही, दोपहर में विशाल शोभायात्रा निकाली गई और 24 भगवान को पाण्डुकशिला पर विराजित किया गया, सौधर्म इंद्र के द्वारा क्षीर सागर के जल से 1008 कलशो से जलाभिषेक किया गया।
प्रिन्ट मीडिया प्रभारी महेन्द्र जैन सोमखेड़ा, सह प्रभारी जय कुमार जलज, मानव बजाज ने जानकारी देते हुए बताया कि महामहोत्सव के अन्तर्गत श्रद्धालु बड़े बाबा और छोटे बाबा के समोशरण में बड़े प्रसन्न नजर आ रहें हैं,जब खुशी बढ़ जाती है तो सब कुछ भूल जाते हैं,जब तीन लोक के नाथ का जन्म होता है तो तीनों लोकों में खुशी होती हैं ऐसा ही अदभुत अलौकिक दृश्य दिखाई दिया। जिस प्रकार लोक में बालक को पालने में झुलाया जाता है उसी तरह बाल तीर्थंकर को भी पालने में झुलाया जाता है, तीन ज्ञान के धारी बाल तीर्थंकर का पालने में झुलाते हुए कैसी कैसी आध्यात्मिक लोरिया सुनाई जाती है उसी उत्साह वर्धन विधि का नाम पालन झूलना है।
24 तीर्थंकर भगवान के जन्मकल्याणक की सबने खुशियां मनाईं और नृत्य किया। दिव्य घोष और जयकारों से सम्पूर्ण क्षेत्र गूंजायमान हो गया, झाकियां आकर्षण का केन्द्र रही, दोपहर में विशाल शोभायात्रा निकाली गई और 24 भगवान को पाण्डुकशिला पर विराजित किया गया, सौधर्म इंद्र के द्वारा क्षीर सागर के जल से 1008 कलशो से जलाभिषेक किया गया।
प्रिन्ट मीडिया प्रभारी महेन्द्र जैन सोमखेड़ा, सह प्रभारी जय कुमार जलज, मानव बजाज ने जानकारी देते हुए बताया कि महामहोत्सव के अन्तर्गत श्रद्धालु बड़े बाबा और छोटे बाबा के समोशरण में बड़े प्रसन्न नजर आ रहें हैं,जब खुशी बढ़ जाती है तो सब कुछ भूल जाते हैं,जब तीन लोक के नाथ का जन्म होता है तो तीनों लोकों में खुशी होती हैं ऐसा ही अदभुत अलौकिक दृश्य दिखाई दिया। जिस प्रकार लोक में बालक को पालने में झुलाया जाता है उसी तरह बाल तीर्थंकर को भी पालने में झुलाया जाता है, तीन ज्ञान के धारी बाल तीर्थंकर का पालने में झुलाते हुए कैसी कैसी आध्यात्मिक लोरिया सुनाई जाती है उसी उत्साह वर्धन विधि का नाम पालन झूलना है।
इसी प्रकार जन्म कल्याणक के अवसर पर जब सौधर्म इंद्र अपने देव
परिवार के साथ जन्मोत्सव मनाने आते हैं तब सर्वप्रथम शचि इंद्राणी से बाल
तीर्थंकर को अनुनय विनय भाव से प्राप्त करने के पश्चात जन्मा भिषेक के
उद्देश्य से बाल तीर्थंकर को ऐरावत हाथी पर विराजमान करके सुमेरू पर्वत पर
ले जाते है, सुमेरू पर्वत पर पाण्डुक वन में बाल तीर्थंकर का जलाभिषेक किया
जाता है इसे से उसे पांडुक शिला कहते हैं। जलाभिषेक के शुभ अवसर पर आचार्य
श्री के शिष्य मुनि श्री अक्षत सागर जी महाराज ने पुण्य देशना में कहा कि
तीर्थंकर को जन्म देनी वाली मां बहुत ही पुण्यशाली होती है। पंच कल्याणक के
माध्यम से हमे जीव का ज्ञान होता है और आत्मा के कल्याण के लिए कार्य करना
है, प्रत्येक जीव के प्रति आत्मीयता हो जाए तो कर्त्तव्यनिष्ठ भी हो सकता
है।
महेंद्र जैन सोमखेड़ा की रिपोर्ट
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