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चौरासी लाख योनियों में कर्म का फल सिर्फ मनुष्य को मिलता है- स्वामी श्री श्रवणनानद जी.. बुंदेली महोत्सव में प्रतियोगिताओं के ऑडीशन आज से.. पवन खरे बने पीएमयूएम शिक्षक संघ के प्रांतीय संयोजक.. केएन कालेज में पर्यावरण जागरूकता अभियान

स्वामी श्रवणनानद सरस्वती जी की कथा का सातवां दिन

दमोह शहर के प्रोफेसर कॉलोनी सिद्धिदानी देवी मंदिर परिसर में में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के सातवे दिवस में स्वामी अखंडानंद सरस्वती जी के परम कृपा पात्र स्वामी श्री श्रवणनानद सरस्वती जी ने बताया,  एक मात्र मनुष्य शरीर चौरासी लाख योनियों में ऐसा है जिसे कर्म का फल मिलता है, प्रारब्ध का फल तो पशु-पक्षी आदि सबको मिलता है। किन्तु वर्तमान में जो कर्म संचित और क्रियमाण बनता है वह सिद्धांत केवल मनुष्य शरीर में लागु होता है।

 यदि मनुष्य शुभ कर्म अथवा पुण्य करता है तो उसे स्वर्ग आदि, सुख मिलता है।अशास्त्रिय कर्म का फल अशांति, उद्वेग होता है। सावधानी रखनी चाहिए कि अच्छे-अच्छे कर्म करने पर भी अभिमान होने के चांस रहते हैं।इन्द्र को भी अभिमान हो जाता है और भगवान के यहाँ यदि कुछ नहीं चलता तो वह अभिमान है।भगवान जिसपर अनुग्रह करते हैं उसके अभिमान का मर्दन करते हैं। अभिमान और कुछ नहीं अपने चारों ओर एक  रेखा खींच लेना ही है और अपने को परमात्मा से काट लेना ही है। परमात्मा का एक नाम है कालात्मा अर्थात समय जो परिवर्तनशील है। सबका परिवर्तन होता है किंतु परिवर्तन होने के नियम का परिवर्तन नहीं होता है, जो परिवर्तन को स्वीकृति देता है वह परमात्मा के निकट होता है और जो विरोध करता है वह परमात्मा से दूर हो जाता है।


स्वयं पर दृष्टि नहीं परमात्मा पर दृष्टि होनी चाहिए। जब हमारी स्व पर दृष्टि होती है तो परमात्मा अंतरहित हो जाते हैं अर्थात पास रहने पर भी दिखाई नहीं देते हैं। कलह हमारे जीवन के स्वर के लय को बिगाड़ देता है। जिस दिन ममता-अहंता दोनों बहेंगे उस दिन परमात्मा साथ होंगे। गोपियों की ममता प्रणय गीत में बह गई और अहंता गोपी गीत में बह गई। रास माने क्या- रस सिंधु में उठने वाली एक एक तरंग रस रूप है, वैसे ही रास में हर एक गोपी कृष्ण रूप है, प्रतिबिंब ही है। ज्ञान या ज्ञानी की निंदा यह भगवान की ही निन्दा है।उद्धव जी जब वृंदावन गये तब शास्त्रज्ञ थे आत्मज्ञ नहीं थे। हृदय बिना प्रेम के सूना है, वह रसीला भगवद् प्रेम से ही होता है।यह प्रेम मिलता कहाँ है-जिसके हृदय में प्रेम होगा वही प्रेम दे सकेगा।
 ब्रज की भूमि प्रेम प्रदाता है। ईश्वर और जीव का कभी विछोह होता ही नहीं है, केवल अलग होने की भ्रांति है। ना बंधन है ना मोक्ष है यह केवल समझाने की शैली है। जीव सदा निर्मुक्त है, मोक्ष स्वरूप है। दुःख की आत्यंतिक निवृत्ति यदि किसी ज्ञान से होगी तो इसी ज्ञान से होगी जो भगवद् ज्ञान, औपनिषद ज्ञान, शास्त्र ज्ञान है। ब्रजवासियों की वंश परंपरा में दीपावली के दूसरे दिन इन्द्र की पूजा होती थी किन्तु हमारे श्रीकृष्ण ने निहारा कि इन्द्र को अभिमान हो गया है। इन्द्र के अभिमान का दमन करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी पूजा निषेध कराकर श्रीगिरिराजजी की पूजा करवायी। अंतःकरण में चाहे काम क्रोध लोभ मोह हो और व्यक्ति भगवान की ओर बढ़ रहा हो तो इन दोषों की परवाह किए बग़ैर भगवान हृदय से लगा लेते हैं किन्तु यदि अभिमान है तो भगवान दूरी बना लेते हैं। भगवान जब अपने प्रिय के अंतःकरण में अभिमान देखते हैं तो पहले उसे मिटाते हैं और फिर अपने से मिला लेते हैं। किंतु यदि कोई संसारी रजोगुणी तमोगुणी जिसके अंतःकरण में प्रेम नहीं होता, तबभी भगवान अभिमान को मिटाते हैं पर अपने से मिलाते नहीं है। 
अपना निरीक्षण करना चाहिए कि यदि कोई हमारी बात नहीं मानता तो हमें पीड़ा होती है क्या!  जिस दिन बात न मानने पर पीड़ा न हो तब जान जाना की भगवान की ओर, अध्यात्म की ओर बढ़ रहे हो। जिसका चरित्र पवित्र होता है वही महात्मा, परमात्मा की उपाधि से अलंकृत होता है। श्रीकृष्ण किसी भी कर्म के अपने को कर्ता नहीं मानते हैं। वे ना सफलता का श्रेय लेते हैं, न असफलता का दोष किसी को देते हैं, दोनों परिस्थिति में समता का व्यवहार करते हैं। भगवान कृष्ण ने, राम ने कभी किसी पर पहले प्रहार नहीं किया है, कभी किसी को उकसाया नहीं है।किन्तु यदि उनपर किसी ने प्रहार किया तो उसे छोड़ा भी नहीं है। यदि कोई सामने से प्रहार करे तो अपनी रक्षा में प्रहार करना ही चाहिए। अपने जीवन की सभी सफलताओं को भगवान से जोड़ देना भक्त का लक्षण है। जीवात्मा अपने को छपाना चाहता है की सब हमको बड़ा मानें। परमात्मा अपने को छुपाना चाहता है कि कोई हमको बड़ा नहीं अपना माने। परमात्मा की ओर यात्रा करना हो तो परमात्मा सुंदर मन देखते हैं सुंदर शरीर नहीं देखते हैं। संसार मन नहीं देखता केवल तन देखता है। यदि संसार में अपने मन की करने लगो तो किसी को पसंद ही नहीं होगा। परमात्मा की ओर बढ़ने के लिए अपने मन का श्रृंगार करो,  जिस दिन मन से सुंदर हो जाओगे उस दिन परमात्मा तक पहुँच जाओगे। 
भगवान गोपियों को जानते थे कि वे धर्म की नहीं परमधर्म की अधिकारिणी है, फिर भी उन्हें धर्म का उपदेश देते हैं। वे गोपियों के माध्यम से दुनिया को यह जानना चाहते हैं कि अध्यात्म की ओर बढ़ने की पहली सीढ़ी धर्म है फिर परमधर्म है। रास के वे ही अधिकारी है जो जगत की ममता और शरीर की अहंता से ऊपर उठ चुके हैं। गोपियों ने प्रणय गीत के माध्यम से पहले जगत खोया और गोपी गीत के माध्यम से अपने ‘मैं’ को खोया, उसके बाद ही महारास हुआ है। श्रीराधा नाम सार का भी सार है। दुनिया पुकारती हैं कृष्ण कृष्ण और कृष्ण पुकारते हैं श्रीराधे श्रीराधे! प्रेम की उन्मत दशा में यह पुकारा जाता है।जो उन्नत स्वर्ग में पुकारा गया ईश्वर का स्वर है उसी का नाम श्रीराधा है। श्रीराधा श्रीकृष्ण की अह्ललादिनी शक्ति हैं, श्रीकृष्ण की आराधिका हैं श्रीराधा। भगवान की पहचान रूप से नहीं स्वरूप से होती है। उनकी पहचान के कुछ अंतरंग लक्षण होते हैं,  वे बहिरंग रूप(वेष) से नहीं पहचाने जा सकते हैं

बुंदेली दमोह महोत्सव में प्रतियोगिताओं के ऑडीशन आज 11 जनवरी से.. दमोह। बुंदेली गौरव न्यास द्वारा 18 जनवरी से 31 जनवरी तक आयोजित होने वाले बुंदेली दमोह महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें न्यास सचिव प्रभात सेठ ने बताया कि बुंदेली दमोह महोत्सव में विभिन्न सांस्कृतिक खेल कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं साथ ही विभिन्न विधाओं की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती है। इसी कड़ी में स्वरश्री एकल युगल, नृत्य श्री एकल युगल, वाद्य श्री और अभिनय श्री जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित होगी जिसमें ग्रुप ए में 5 वर्ष से 10 वर्ष, ग्रुप डी में 11 वर्ष से 16 वर्ष, ग्रुप सी में 17 वर्ष से 22 वर्ष और ग्रुप डी में 23 वर्ष से अधिक के प्रतिभागी प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं।
 जिसमें इच्छुक प्रतिभागी ओजाशिनी विद्यालय मलैया मिल, गणेश स्टेशनरी अस्पताल चौराहा, कपिल स्टेशनरी घंटाघर, अंजनी बुक सेंटर बस स्टैंड से प्रतियोगिताओं के आवेदन प्राप्त कर जमा कर सकते हैं 11 12 13 जनवरी को लॉ कॉलेज परिसर में प्रतियोगिताओं का ऑडिशन सुबह 10:00 बजे से 4:00 बजे तक लिए जाएंगे ।

पवन खरे बने पीएमयूएम शिक्षक संघ के प्रांतीय संयोजक
दमोह। 
पीएमयूएम शिक्षक संघ दमोह जिला अध्यक्ष पवन खरे जी की सक्रीयता, कार्यशैली, संघ की मुख्य मांगे केंद्रीय बेतन मान एवं कैशलेस हेल्थ कार्ड के लिए संघर्षरत एवं कर्मचारियों के हितार्थ हमेशा समर्पित रहकर कार्य करने की दृढ़ इक्षाशक्ति, कुशल नेतृत्व क्षमता के धनी पवन खरे जी को संघ के प्रांत अध्यक्ष मुरली मनोहर अरजरिया जी एवं प्रांतप्रमुख सतीश खरे जी ने प्रांतीय संयोजक के पद पर मनोनीत किया।
श्री पवन खरे जी को पीएमयूएम शिक्षक संघ का प्रांतीय संयोजक बनने पर श्री ब्रजेश असाटी, मोहन ठाकुर, कैलाश असाटी, नरेन्द्र नामदेव, पारस साहू, पंकज जैन, मनोज नामदेव, अनिल मिश्रा, संजय गांगरा, वेदप्रकाश खरे, विवेक ताम्रकार, ओमप्रकाश विश्वकर्मा, दिनेश सेन, प्रदीप पटैल, संतोष कटारया, ज्योति दुबे, अर्चना चौधरी, दीप सिखा अग्रवाल, गिरीश श्रीवास्तव, रीता खरे, अजय रोहित, तखत सिंह, सुदामा प्रसाद नेमा, ब्रजेश मेहरा, विजय कुमार चौरसिया, बैजनाथ नामदेव, गोविंद साहू, भरत पटेल, सत्यम सिंह, रघुबीर अहिरवाल, केके दुबे, शरद त्रिपाठी, उमाकांत गुप्ता, रतले जी, बीकेश राय, देवेंद्र ठाकुर, देशराज यादव, श्रीकांत पटेल, अमित श्रीवास्तव, बलराम चौबे, गिरजा प्रजापति, पुष्पेंद्र राजपूत, ललित सेन आदि ने शुभकामनाएं बधाई दी।
 केएन कालेज में पर्यावरण जागरूकता अभियान..  दमोह।  शासकीय कमला नेहरू महिला महाविद्यालय दमोह में महाविद्यालय प्राचार्य डॉ जी0 पी डॉ जीपी चौधरी की अध्यक्षता में इको क्लब के पर्यावरण शिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में छात्राओं ने अपनी सहभागिता दी । कार्यक्रम की प्रभारी श्रीमती प्रीति वर्मा एवं डॉ प्रणव मिश्रा डॉ आराधना श्रीवास डॉ शिरीन खान डॉ अनुभा तिवारी रही।
 इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान खुशबू विश्वकर्मा द्वितीय स्थान माही राजपूत एवं तृतीय स्थान प्रतिमा सूर्यवंशी ने प्राप्त किया। इसी जागरूकता अभियान के अंतर्गत तीन अन्य कार्यक्रम जिसमें प्रदर्शनी वेस्ट मटेरियल के द्वारा निर्माण कार्य का आयोजन भी किया जावेगा । इस प्रतियोगिता में वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ पी एल जैन डॉ रेखा जैन डॉ एन पी नायक डॉ अवधेश जैन डॉ मालती नायक, डी आर दुबे एवं महाविद्यालय का समस्त स्टाफ उपस्थित रहा।

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